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सृष्टि की पहल टेकपेडिया का उद्देश्य देश भर में युवा प्रौद्योगिकी के छात्रों की कार्य-सूची में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों, अनौपचारिक क्षेत्र, जमीनी स्तर पर नवीन आविष्कारों और अन्य सामाजिक क्षेत्रों की समस्याओं को शामिल करने के लिए काम करना है. पिछले साठ साल में, भारत के लाखों छात्रों के तकनीकी कार्यों का ज्यादा उपयोग नहीं किया गया है. लेकिन अब और नहीं. क्या एक ज्ञानवान समाज वास्तव में अभियांत्रकी, औषधि विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान, कृषि आदि के हजारों पॉलिटेक्निक, डिग्री और डिप्लोमा कॉलेजों में फैली हुई विशाल प्रतिभा की अनदेखी बर्दाश्त कर सकता है?

सृष्टि क्षैतिज नवाचारों के लिए सहयोग करने, सह-सृजक बनने और प्रोत्साहित करने के लिए उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों को एक मंच प्रदान कर रहा है. यहां उल्लेखित अधिकांश विचारों का कार्यान्वन गुजरात में गुजरात तकनीकी विश्वविद्यालय के सहयोग से किया गया है और प्रारंभिक परिणाम बेहद उत्साहजनक हैं.

मुख्य लक्ष्य हैं :

  • प्रौद्योगिकी के छात्रों के बीच मौलिकता का संवर्धन, जो पहले किया जा चुका है, उनके लिए करना असम्भव करते हुए. यह तभी संभव होगा जब उन्हें पता होगा कि पहले क्या किया गया है. टेकपेडिया डॉट इन में पहले से ही भारत में 500 से अधिक कॉलेजों से 3.5 लाख छात्रों की 1.4 लाख प्रौद्योगिकी परियोजनायें जमा है.
  • तकनीकी छात्रों को अनौपचारिक और असंगठित क्षेत्र और जमीनी स्तर पर नवप्रवर्तकों की समस्याओं के साथ जोड़ना.
  • छात्रों की कार्य-सूची में एसएमई की तकनीकी समस्याओं का लाना जिससे किफायती समाधान वास्तविक समय में निकाला जा सके.
  • औपचारिक और अनौपचारिक क्षेत्र में हमारे देश की अनवरत समस्याओं को हल करने के लिए सभी क्षेत्रों और कॉलेजों की छात्रों की सहयोगी क्षमता का उपयोग करना.
  • उत्पाद विकास की खो-खो मॉडल (रिले) का अन्वेषण करना. यहाँ विचार है कि एक छात्र समूह ने एक विशेष समस्या का समाधान एक विशिष्ट चरण तक लाया है, तो अगला समूह विभाग के भीतर का या कहीं और का, इस पर निर्माण करने या इसे आगे ले जाने में सक्षम होना चाहिए.
  • हमारे समाज की अनसुलझी समस्याओं का समाधान करने के लिए छात्रों को चुनौती देना. गांधीजी ने चरखा-कताई चक्के को नया स्वरूप देने के लिए £ 7,700 के एक पुरस्कार, (लगभग एक लाख रुपए) की घोषणा की थी. आज इस पुरस्कार का मूल्य 10 करोड़ रुपये से अधिक होगा. उद्योग संघ, सरकार और अन्य लोग लंबे समय से अनसुलझी समस्याओं को सुलझाने के लिए आकर्षक पुरस्कार प्रदान कर सकते हैं.
  • नेटवर्क प्लेटफॉर्म के माध्यम से उच्च तकनीक की क्षमताओं का विकास करना जिससे भारत भविष्य में दुनिया के लिए उच्च तकनीक की आउटसोर्सिंग का एक केंद्र बने और केवल कम तकनीकी आवश्यकताओं की सेवा नहीं करे.
  • आईपीआर रक्षित और खुला स्रोत प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना और अंत में टेकपेडिया डॉट इन का एक ऑनलाइन आभासी इनक्यूबेटर के रूप में विकास.
  • युवा छात्रों को परामर्श देने के लिए वरिष्ठ तकनीकी विशेषज्ञों के कौशल, अंतर्दृष्टि और अनुभव का उपयोग करने के लिए वास्तविक समय ऑनलाइन एनएम्एन (राष्ट्रीय सलाह नेटवर्क) बनाना.

यह स्पष्ट है कि कोई एक संस्था या विश्वविद्यालय इन लक्ष्यों में से कोई भी पूरा नहीं कर सकते हैं. हम छोटे उद्यमों, अनौपचारिक क्षेत्र और वंचित क्षेत्रों में स्थानीय समुदायों की समस्याओं को एक समयबद्ध ढंग से हल करने के लिए एक सहयोगी संस्कृति बनानी होगी. हर बार जब एक छात्र एक वास्तविक जीवन की समस्या हल करता/करती है वह महज एक बेहतर प्रौद्योगिकीविद् ही नहीं बनाता/बनाती बल्कि वह एक बेहतर इंसान भी बन जाता/जाती है.

यह भी सच है कि सभी छात्र समूहों छह से दस महीने में एक जटिल तकनीकी समस्या को हल करने में सक्षम नहीं हो जाएंगे. कई असफल होंगे. विश्वविद्यालयों को एक संस्कृति विकसित करने होगी जिसमें एक ईमानदार विफलता को दंडित नहीं किया जाएगा. वरना, हमारे युवा मन के बीच जोखिम को स्वीकार करने वाली संस्कृति कभी विकसित नहीं होगी. इसी प्रकार, छात्र टीम को मार्गदर्शन के लिए सभी विशेषज्ञता एक ही कॉलेज या विभाग में उपलब्ध नहीं हो सकती है. विभिन्न क्षेत्रों, सेवानिवृत्त वैज्ञानिकों, और राष्ट्रीय अकादमियों के फेलो को रूचि वाली परियोजनाओं में मार्गदर्शन करने में सक्षम होना चाहिए.

टेकपेडिया डॉट इन, इस प्रकार भारत को एक रचनात्मक, सहयोगात्मक और समाज बनाने के लिए युवा छात्रों की आकांक्षाओं को बढ़ाने वाला समूह है. जल्द ही, एक ईआरपी समाधान लाया जाएगा जिससे प्रगति के विभिन्न चरणों को आन लाइन पता लगाया जा सके. यहां तक कि कंपनियां भर्ती के लिए चुनी हुई परियोजनाओं को पता लगा सकें, यदि इसकी अनुमति छात्रों और संकाय टीम द्वारा दी गई है, जिससे वे होशियार और कड़ी मेहनत करने वाली टीमों का चयन कर सकें. कंपनियां भी अपनी समस्याओं को पोर्टल पर रख सकती हैं. प्रत्येक विश्वविद्यालय यदि चाहे तो अपनी ट्रैकिंग प्रणाली विकसित कर सकता है.



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